International Journal of Contemporary Research In Multidisciplinary, 2025;4(2):377-381
आदिवासी महिला सशक्तिकरण और राजनीति में उनकी भूमिका
Author Name: प्रीति खेस; डॉ० आलोक कुमार;
Abstract
झारखंड राज्य का निर्माण केवल एक प्रशासनिक परिवर्तन नहीं था, यह वर्षों से उपेक्षित एक सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक अस्मिता की पुकार का उत्तर था। इस चेतना में आदिवासी महिलाओं की भूमिका मात्र सहयोगी नहीं, बल्कि निर्णायक रही है। राजनीतिक नेतृत्व की धारणा जहाँ मुख्यधारा की राजनीति में प्रायः पुरुष-वर्चस्व के साथ जुड़ी रही है, वहीं झारखंड में आदिवासी महिलाओं ने इस विचार को तोड़ते हुए एक वैकल्पिक और जनसरोकार से जुड़ा नेतृत्व प्रस्तुत किया है।आदिवासी समाज की परंपराएं महिलाओं को समाज के संरक्षक के रूप में देखती रही हैं — वे खेतों की देखरेख करती हैं, पारंपरिक उत्सवों को संजोती हैं, और गांव की सामूहिक चेतना में बराबर की भागीदार रहती हैं। किंतु जैसे ही यह भूमिका औपचारिक राजनीति के मंच पर आई, आदिवासी महिलाओं को कई सामाजिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक चुनौतियों से दो-चार होना पड़ा। झारखंड के सुदूर गांवों से लेकर पंचायतों तक, आदिवासी महिलाओं ने न केवल इन चुनौतियों का सामना किया, बल्कि अपनी नेतृत्व क्षमता से यह भी सिद्ध किया कि वे अपने समुदाय की सच्ची प्रतिनिधि हैं।झारखंड में पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद से ही महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अवसर मिला, लेकिन केवल आरक्षण से नेतृत्व संभव नहीं था। यह नेतृत्व उभरा अपने अनुभवों, संघर्षों और समुदाय के साथ गहराई से जुड़े सरोकारों से। महिला मुखियाओं, वार्ड सदस्यों और जिला परिषद सदस्याओं ने अपने कार्यक्षेत्र में ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और पारिवारिक हिंसा जैसे मुद्दों पर निर्णायक पहल की। उन्होंने केवल कागज़ी योजनाओं तक सीमित न रहकर अपने फैसलों को धरातल पर उतारने का प्रयास किया।
Keywords
चेतना, स्थानीय, भारतीय, भाषण, सामुदायिक, हिस्सेदारी, संघर्ष, झारखंड में आदिवासी, महिलाओं, राजनीतिक, प्रतिनिधित्व, क्रांति, मिट्टी से जुड़ी, भविष्य